शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है; रोमियों 8:6

शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है, परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है। क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है, क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के आधिन है, और न हो सकता है। और जो शारीरिक दशा में हैं, वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते। परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है, तो तुम शारीरिक दशा में नहीं, परन्तु आत्मिक दशा में हो।- रोमियों 8:6-9अ
परमेश्वर का वचन यह स्पष्ट करता है। यदि आप स्वभाविक, शारीरिक और अनविनिकृत मन के पीछे चलेंगे तो यह आपको मृत्यु तक पहुँचाएगी। परन्तु यदि आप आत्मिक मन रखेंगे, इसका तात्पर्य यह है कि परमेश्वर का पवित्र आत्मा आपके भीतर रहता है। और जो कुछ वह आप से करने के लिये कहता है, उसे आप करते हैं। तो आप जीवित और परमेश्वर के साथ चल रहे हैं।
चुनाव आपका है। आप कम से कम प्रतिरोध वाले नदी में सफर कर सकते हैं और जहाँ कहीं धारा आपको ले जाए वहाँ आप जा सकते हैं। या आप परमेश्वर के बहाव में चलने का चुनाव कर सकते हैं। हम उसे आत्मा में चलना या मसीह के स्वभाव को जीना कहते हैं।
मेरे पास आपको यह सिखाने के लिये काफी सलाह हैं, कि मसीह के मन में कैसे बहा जा सकता हैं। पहला सकारात्मक विचारों को विकसित करना है। बहुत से लोगों के लिए यह स्वभाविक रूप से नहीं होता है। आपके मन के लिये यह बहुत आसान है कि नीचे के पल तक डूब जाए और लोगों के विषय में सब से बुरा सोचे। इस के बदले में, आप स्वयं को सकारात्मक रूप से प्रशिक्षित कर सकते हैं। आमोस 3:3 पूछता है,“यदि दो मनुष्य परस्पर सहमत न हों, तो क्या वे एक संग चल सकेंगे?” यदि आप मसीह के साथ चलते हैं तो आप मसीह के समान विचार सोच सकते हैं। आप दूसरों में अच्छाई देख सकते हैं, और उन्हें ऊपर उठा सकते हैं।
यीशु के विषय में सोचिये, जिसको उसके शिष्य यहूदा द्वारा धोखा दिया गया। जिसके विषय में याजकों द्वारा झूठ बोला गया, पतरस द्वारा नकारा गया, फिर भी वह कभी कड़वा नहीं बना। वह हमेशा एक ऐसा व्यक्ति था, जिसने लोगो से कहा, उसने कहा, ‘‘हे प्रभु, किसी ने नहीं’’। यीशु ने कहा, ‘‘मैं भी तुझ पर दंड की आज्ञा नहीं देता; जा, और फिर पाप न करना।’’ (यूहन्ना 8:11)। वह क्रूस पर चढ़ा, जैसे आवाजों के मध्य भी उसने प्रार्थना किया। ‘‘तब यीशु ने कहा; हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं?’’ (लूका 3:34 
क्योंकि मसीह का मन सकारात्मक है। जब कभी आप का विचार नकारात्मक हो जाता है, तो आप निश्चित हो सकते हैं कि आप परमेश्वर के बहाव में चलिए परमेश्वर के बहाव में नहीं चल रहे हैं। आप परमेश्वर के सामर्थ और आत्मा के द्वारा कार्य नहीं कर रहे हैं।
इसे इस प्रकार से सोचिए; परमेश्वर आप को ऊँचा उठाना चाहते है और स्वर्ग की ओर ध्यान केन्द्रित करने में आपकी सहायता करना चाहता है। शैतान आपको नीचे की ओर दबाना चाहता है ताकि आप नीचे की ओर पृथ्वी पर ध्यान केन्द्रित करें।
दूसरी बात जो आप कर सकते हैं; वह स्वयं को स्मरण दिलाना है, कि आप से कोई प्रेम करता है। यीशु ने आप से इतना प्रेम किया, कि वह आप के लिये मर गया-‘‘हे प्रियों, हम आपस में प्रेम रखें; क्योंकि प्रेम परमेश्वर से हैः और जो कोई प्रेम करता है, वह परमेश्वर से जन्मा है; और परमेश्वर को जानता है।’’ प्रेम इस में नहीं, कि हम ने परमेश्वर से प्रेम किया, पर इस में है, कि उस ने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों की प्रायश्चित के लिये अपने पुत्र को भेजा।’’ (1 यूहन्ना4:7,10)।
कभी कभी आपको स्वयं से कहने की जरूरत हो सकती है, मुझ से कोई प्रेम करता है। परमेश्वर मुझ से प्रेम करता है, क्योंकि उसने मेरी दृष्टि की है। एक पुरानी कहावत है, ‘‘परमेश्वर ने कभी कुड़ा कर्कट नहीं बनाया।’’ और इसका तात्पर्य है, कि जो कुछ उसने बनाया वह अच्छा था – जिस में आप भी शामिल हैं। यदि आप अपने चिचारों को परमेश्वर के प्रेम पर केन्द्रित करते हैं, तो आपका कभी पथभ्रष्ट नहीं होंगे।
जब मैंने पहले बार ‘‘जॉयस मेयर मिनिस्ट्री’’ प्रारंभ किया, परमेश्वर ने कहा; कि मैं लोगो को सिखाऊं कि वह उन से प्रेम करता है। बहुधा हम बाइबल के इस स्पष्ट सन्देश को छोड़ देते हैं। हम अपनी असिद्धता की ओर देखते हैं और पूछते हैं, कैसे संभव है कि परमेश्वर मुझ से प्रेम करे? परमेश्वर शुद्ध प्रेम की आँखों से हम में से प्रत्येक को देखता है और पूछता है, ‘‘मैं, तुम से कैसे प्रेम न करूँ? तुम मेरे हो।’’
कोई बात नहीं कि अक्सर आप पराजित हो गये हैं, या आप कितने कमजोर हैं। प्रेरित पौलुस के इन शब्दों में परमेश्वर ने आपको अपनी अद्भूत निश्चयता दी है। ‘‘क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ, कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ, न ऊँचाई, न गहराई और न कोई और सृष्टि, हमें परमेश्वर के प्रेम से, जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।’’ (रोमियों 8:38-39)।
यही सन्देश है। परमेश्वर के प्रेम से आप को कुछ भी अलग नहीं कर सकता है। जितना अधिक आप अपने लिये परमेश्वर के प्रेम पर मनन करते हैं, उतनी ही आसानी से आप परमेश्वर के प्रेम में बनेंगे।
परमेश्वर मैं यथा संभव आपकी निकटता में चलना चाहती हूँ। स्वस्थ और सकारात्मक बातों पर अपनी मन को लगाए रखने में मेरी सहायता कर। मुझे स्मरण दिला कि मैं तेरे द्वारा-पूर्ण और संपूर्ण रूप से-प्रेम किया जाता हूँ। और तेरे साथ तेर बहाव में चलने के लिये मेरी सहायता कर। यीशु के नाम से मैं प्रार्थना करती/करता हूँ । आमीन।।

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